मंगळवार, १८ ऑक्टोबर, २०११

बौद्ध और महार इस समाज का आंतरधर्मीय व आंतरजातीय विवाह

( मराठी साठी पुढील लिंक वर क्लिक करा .http://abhijitganeshb0.blogspot.com/2011/08/blog-post.html )
बहोत जरुरी मुद्दे पर विचार रखने का साहस कर रहा हू पर भविष्य पर दृष्टिक्षेप डालते हुए इस मुद्देपर इस समाज ने सोचना चाहिए ऐसा मुझे आवश्यक लगता है | पहले तो बौद्ध और महार ये शब्द भिन्न है मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हू पर जिन्होंने बौद्ध धम्म में धर्मांतर ( जिस धर्म में थे उस पुराने धर्म को छोड़कर विचार , आचार , उच्चार और कागजात इ. सहित ) नहीं किया वे लोग भी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर इस महापुरुष की वजह से बौद्ध धम्म का अर्थ समजने लगे और उसमे आगे रहा वो समाज महार है ऐसा मुझे लगता है | मुझे इस बात की भी कल्पना है की मैंने ये दोनों शब्द एकही जगह पर उपयोग में लाये इसलिए कुछ लोग बड़ी नाराजी व्यक्त कर सकते है पर मुझे मेरा मुद्दा इस बातसे भी ज्यादा जरुरी लगता है | रहे |
      बौद्ध और महार समाज आज के दौर में उच्चवर्णीय समाज से विवाह करने के निर्णय प्रक्रिया में सबसे आगे है ऐसे निष्कर्ष फ़िलहाल तो निकालते ही आएंगे | इससे भविष्य में बड़ा बदलाव आ सकता है | इसलिए वर्त्तमान में इस विषय की वजह से बहोत से सवाल खड़े हुए नजर आते है | दोनों समाज की युवतीया ब्याहने में उच्चवर्णीय समाज को बड़ी कठिनाई महसूस होती है और इन दोनों समाज को भी बहोत सी कठिनाइया महसूस होतीही है | पर इसी जगह उच्चवर्णीय लोगो की युवतीया बड़े पैमाने पर इन समाज के युवको से विवाह रचाते हुए नजर आती है | पक्का इस वजह इस अध्याय से भविष्य में क्या बदलाव आयेंगे ? यह सोचना आज की स्थिति में महत्वपूर्ण बन चूका है | मुझे तो ऐसा लगता है की जो लोग बौद्ध बन चुके है उन्हें तो जातिप्रथा जैसे फाल्तुक मुद्दे से कोई लेना देना रहा ही नहीं है | जाती प्रथा होना ये हिंदू धर्म की सबसे बड़ी समस्या है और उन्होंने अंतरजातीय विवाह करना जरुरी है | पर मदद और देश कार्य के लिए अगर बौद्ध समाज अंतरधर्मीय विवाह करते है तो ठीक है पर उनका सीधे रस्ते तो जाती प्रथा से किसी भी प्रकार से लेनदेन नहीं ये निश्चित है |
      आजका बौद्ध और महार समाज का युवा वर्ग बड़े पैमाने पर अंतरधर्मीय और अंतरजातीय विवाह करते हुए नजर आते है | पर समस्या ये बन चुकी है की वो युवा विवाह करने के बाद अपने समाज से दूर जाने में या फिर पीठ फेरने में धन्य मानता है , ऐसा क्यों होता है ? अंतरधर्मीय और अंतरजातीय विवाह यह बौद्ध और महार समाज के लिए भविष्य की समस्या बन चुकी है | ये कड़वा मगर सत्य है | इसका कारण क्या है ? जो युवक विवाह करता है वो या जो युवती विवाह करती है वो ? वास्तविक अंतरधर्मीय और अंतरजातीय विवाह यह दो संस्कृति , दो अलग अलग समाज को जोड़ने वाला तंतु बनता है ( अन्य भी बहोत सारे महत्व है ) | पर यह बौद्ध और महार समाज के लिए जहर दिखाई दे रहा है | इसका क्या कारण है ? इसमें के दोषों को देखते हुए कुछ ने तो यहाँ तक कथन किया है की डॉ . बाबासाहब आंबेडकर इनका ब्राम्हण स्त्री के साथ शादी करने का निर्णय गलत हुआ था ( प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष प्रकार से ) | मुझे ऐसे मत पढने के बाद हसी आती है , अगर हममे सामर्थ्य नहीं है तो उसके लिए डॉ . बाबासाहब आंबेडकर को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है ? वास्तविक मेरे मत से डॉ . बाबासाहब आंबेडकर का निर्णय सिर्फ स्तुति के पात्र न होकर ऐतिहासिक मोड देने वाला साबित हो चूका है | फरक यही है की प्रज्ञा का बौद्ध और महार समाज में अभी तक भी विकास किया नहीं है ( अपवाद होंगे ) | मेरा व्यक्तिगत मत ऐसा बन चूका है की अंतरधर्मिय और अंतरजातीय विवाह करने योग्य ( उच्चवर्णीय समाज से ) अभी भी बौद्ध और महार समाज के युवक और युवतिया परिपक्व नहीं हुए ( अपवाद होंगे ) | परिस्थिति ऐसी बनती है की आने वाला जो शिशु जन्म लेता है वो माँ के सहवास में सर्वाधिक रहता है | और माँ ने अभी भी देव , धर्म , ईश्वर वाली संकल्पनाओ का त्याग नहीं किया होता | इसलिए उसकी माँ उसे ग मतलब गणपति और भ मतलब भटजी यही सिखाती है | उस युवती का साथीदार उसे बौद्ध ( अज्ञान से प्रकाश की और जाने वाला मार्ग ) बनाने में और उसका मन परिवर्तन करने में असफल हुआ होता है | या फिर उसे बौद्ध संस्कार या बौद्ध से कोई लेनदेन नहीं रहता है | यह आज का निर्णय उसकी अगली पीढ़ी पर बहोत परिणामकारक सिद्ध होगा इसमें कोई संदेह हो ही नहीं सकता पर वह इस बारे में पूर्ण अनभिज्ञ नजर आता है या जानबूझकर अनभिज्ञ बनता है | वैसे ही इस समाज की युवतीने अगर अंतरधर्मीय या अंतरजातीय विवाह किया होगा तो अपने साथीदार के सामने उसकी कोई एक नहीं चलती | उसका देव , ईश्वर , धर्म , जाती वह चुपचाप स्वीकार कर लेती है | वह पूर्णत: अपने साथीदार या ससुराल की मर्जी , धर्म , जाती ,परंपरा , प्रथा के अनुसार पालन शुरू कर देती है | वह अपने साथीदार का स्वीकार करती है प्रथानुरूप , परंपरानुरूप , धर्मनुरूप रहनसहन बदलने के लिए तैयार हो जाती है | प्रथा ,परम्परा धर्मानुसार गुलाम होना पसंद करती है पर जिस बुद्ध धम्म स्वातंत्र्य , समता ,बंधुता ,न्याय ऐसे कई गुण है वो उसे मालूम नहीं होता या फिर वो बोल नहीं पाती या फिर बोलती नहीं है | उसकी गुलामी के प्रतीकात्मक रूप भी वे पहनती है उदा. मंगलसूत्र ,सिंधुर ,चुडिया इ. | अपने बच्चे ने जागृत रहना चाहिए ( जिसका अंतरधर्मिय या अंतरजातीय विवाह हो चूका है उसके पालक ने ) ऐसे संस्कार उसे उसके माँ बाप से मिले नहीं होते पर्याय स्वरुप उसपर बौद्ध संस्कार नहीं हुए होते | और इस वजह से आनेवाली पीढ़ी यह बौद्ध ( अज्ञान से प्रकाश की और जाने वाला मार्ग ) न होते हुए देव ,धर्म ,परंपरा , ईश्वरवाद इनमे जकड़ जाती है | कल्पना पर विश्वास देव या ईश्वर पर विश्वास यह इसमे ही समा जाते है | इसपर ( जिन्होंने अंतरधर्मीय या अंतरजातीय विवाह किया है ) उस व्यक्ति से अगर पूछा जाए तो उसका कहना होता है की , उसे उसका धर्म पालन करने का स्वातंत्र्य है | पर हमने जिसके साथ विवाह किया उसका मन परिवर्तन करने में या फिर हिंदू ( या और कोई ) कल्पनामिश्रित धर्म है ये साबित करने में हम असफल रहे ये बात उसे ध्यान आती ही नहीं या फिर ध्यान देने की उसकी जरुरत नहीं होती | फिर वह इस बात को अनदेखा कर देता है और आनेवाली पीढ़ी भटक जाती है | जो आज तक हुआ वो आगे भी होते रहता है | इसका उदहारण देने की मुझे जरुरत नहीं लगती | पर इसपर मेरा एक मत हमेशा से ही रहा है की , अंतरधर्मीय और अंतरजातीय विवाह करना बिलकुल गलत नहीं है | पर विवाह करने पूर्व अगर हम प्रेम अध्याय ( ये आजकल के युवक - युवतीयों की भावना है ) कर रहे है तो हमें उस व्यक्ति का मन परिवर्तन करने के लिए बहोत वक्त मिलता है | वो वक्त लेकर हमने उसका मनपरिवर्तन करना चाहिए | विवाह पश्चात भी बहोत समय मिलता है | पर हम इस बात के बारे में सोचते ही नहीं या फिर हम उस व्यक्ति का यह धार्मिक स्वातंत्र्य है ऐसा युक्तिवाद करते है | स्वातंत्र्य है पर क्या इसका मतलब यह नहीं होता ? की , जो लोग ऐसे करते होंगे या फिर बोलते होंगे वे लोग अपने साथीदार ने इन झूटी बातों से निकलना चाहिए इसलिए जो साथीदार के लिए कर्तव्य होता है उस कर्तव्य से भागते है ? अत: इन सब बातों पर गहराई से सोचने पर मेरा ऐसा विचार है की , बुद्ध धम्म या आंबेडकर तत्वज्ञान में जबरदस्ती को स्थान है ही नहीं | मन से स्वीकार करना | अनुभव से जानकार पूर्ण चिकित्सक बुद्धिसे स्वीकार करना सिर्फ इसे ही महत्व है उस तरह जो चिकित्सक नहीं जो धम्म को परखता नहीं वो बौद्ध हो ही नहीं सकता या उसे बौद्ध बोल ही नहीं सकते इसलिए पहले हमें बुद्ध धम्म का स्पष्टीकरण करते आ सकता है इतना सामर्थ्यवान होना आवश्यक है और अपने साथीदार को चिकित्सा करने के बाद ही , अनुभव लेने के बाद ही स्वयंम मन से स्वीकार करने की धम्मनुरूप आझादी तो होती ही है | इसलिए बौद्ध और महार समाज ने अपने बच्चोमे पहले इतना सामर्थ्य भरना चाहिए की , बौद्ध धम्म ( अज्ञान से प्रकाश की और ले जाने वाला मार्ग , एक जीवन शैली ,धर्म कहकर नहीं तो धम्म {मानव मानव के बिच के नीतिमत्ता से चलने वाले सम्बन्ध के तत्व} समझाकर ) कैसा योग्य है ? यह स्पष्टीकरण देने की प्रज्ञा विकासित होनी चाहिए | और अगर माँ बाप के संस्कार वैसे नहीं हुए हो तो बौद्ध और महार समाज के युवा वर्ग ने वो स्वयम ही विकासित करने चाहिए उसके बादमे ही अंतरधर्मीय या अंतरजातीय विवाह के बारे में सोचना चाहिए नहितो फाल्तुक में अपने समाज का भवितव्य कचरे में ना डाले | पहले हम स्वयम बुद्ध धम्म का अर्थ ठीक तरह से बता पाएंगे ऐसी प्रज्ञा स्वयम में निर्माण करनी चाहिए |
      उच्चवर्णीय लोगो की युवतिया वैसे अपना भविष्य परखने में बड़ी ही चतुर नजर आती है क्योकि इन दोनों समाज का जो युवक तरक्की करने के आसार हो उसी से वे विवाह करती है | और इस समाज के एक युवती का भविष्य जलाती है | इस समाज के युवतीयों की संख्या दिन पर दिन बढ़ते जा रही है और प्रगतिशील रहने वाले युवको की मानसिकता इस समाज की ( बौद्ध और महार ) युवतीयों से विवाह करने की नहीं है | इस समाज की युवतिया अन्य समाज के युवको से विवाह करने के मामले में पीछे है | युवको की संख्या मात्र अधिक है | सिर्फ हमें एक अच्छा साथीदार मिलना चाहिए यह आशा रखते हुए अगर हम विवाह करते होंगे तो अगले पीढ़ी का विचार करना भी तो जरुरतही है | अपनी आगे की पीढ़ी हमें किस तरह से किस संस्कार के साथ शामिल करनी है ? भूतकाल हमारे हाथ में निश्चित रूप से नहीं है पर वर्त्तमानकाल में क्या करना है ? ये अपने ही हात में है | भूतकाल से अनुभव लेकर वर्त्तमान काल में कार्य करने से भविष्य क्या निर्माण करना है ये सर्वथा स्वयंम पर आधारित होता है | इन बातों पर पूरा युवा वर्ग गहराई से सोचे लेख बढे नहीं इसलिए यही खत्म करता हू अन्यथा बहोत से मुद्दों का विश्लेषण कर सकता था |
धन्यवाद
{ अभिजीत गणेश भिवा }
मराठी के लिए अगली लिंक पर क्लिक करे http://abhijitganeshb0.blogspot.com/2011/08/blog-post.html

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा