बहोत बड़े मुद्दे पर मत रखने जा रहा हू | शायद मेरे मत से किसी के विचारों को चालना मिली तो वही मेरी लेख लिखने की सफलता होगी | गोयंका गुरूजी ने बर्मा से भारत में विपश्यना साधना लायी | क्या उनकी विपश्यना आदमी को बौद्ध बनाती है ? क्या बाबासाहब को अपेक्षित बुद्धिझम का मार्ग यही है ? क्या बाबासाहब को अपेक्षित बुद्धिझम विपश्यना को बौद्ध धम्म का महत्वपूर्ण अंग की स्वीकृति प्रदान करता है ? सायकल पर घुमकर कांशीराम जी ने आन्दोलन को बढ़ाया | क्या कांशीराम जी ने बौद्ध धम्म को बढाने का कार्य किया है ? क्या उनका आन्दोलन बाबासाहब की धम्मक्रांति को समर्पित है ?
गोयंका गुरूजी जो विपश्यना साधना ही बुद्ध के धम्म का महत्त्वपूर्ण अंग घोषित करते है , जब की विपश्यना साधना से सामाजिक फायदा क्या है ? ये बात मेरे समझ में नहीं आती | अत : उनके कथन के अनुसार वे शील ,समाधी और प्रज्ञा इस मार्ग को बुद्ध का मार्ग घोषित तो करते है पर वे उसे विपश्यना में बंदिस्त कर देते है | शील ,समाधी और प्रज्ञा इन तीनों शब्दों में अष्टांगिक मार्ग को दिखाया जाता है | क्या व्यक्ति को १० दिवशीय शिविर करावा कर खुद के अंगों में एकाग्रचित्त करके स्वतंत्रता ,समता ,बंधुता ( करुणा ) ,मैत्री ,शील इनकी समाज में प्रस्थापना होगी ? “ बुद्ध ने महान सामाजिक सन्देश दिया |” ऐसा बाबासाहब कहते है | तो क्या विपश्यना उस सामाजिक सन्देश को समाज में प्रस्थापित कर सकती है ? बाबासाहब ने बड़ी दिक्कत और मशक्कतो के बाद अपने अनुयायियों को बुद्ध का मार्ग प्रदान कर उन्हें एक सही प्रगति की दिशा दी | और सभी को धर्मांतर करने का हेतु प्रदान किया | पर गोयंका गुरूजी के अनुसार अगर देखे तो धर्मांतर करने की आवश्यकता तो होती ही नहीं है , बुद्ध का मार्ग तो आप जो धर्म में है वहा से भी पालन कर सकते है | अब गोयंका गुरूजी को यह कैसे समझाए की आज के युग में धर्म का क्या क्या महत्व है ? बुद्ध धम्म तो समयानुसार परिवर्तनशील होता है | आज के दौर में शैक्षणिक , आर्थिक , सामाजिक ,राजनैतिक ऐसे सभी क्षेत्रो में धर्मो का प्रभाव बारीकी से देखने के लिए मिलता है | कुछ लोगो का कहना है की गोयंका गुरूजी सच्चे बौद्ध धम्म को आगे बढा रहे है | तो उन लोगो से पुछना चाहूँगा की ,फिर बाबासाहब ने क्या झूठे बौद्ध धम्म की दीक्षा ली ? क्या गोयंका जी को ऐसा साबित करना है की , कागजी तौर पर अगर लोग बुद्धिस्ट नहीं होते तो भी चलता है ? विपश्यना से आदमी को मात्र अकेले में अगर अभ्यास करना है तो अकेले का धम्म व्यक्तिगत हो जायेगा | बुद्ध का धम्म नीतिमान समाज की निर्मिति करने के लिए है , न की एक जगह स्वस्थ बैठकर समाज से बैराग प्राप्त करने के लिए | गोयंका गुरूजी की साधना आदमी को एकांतवास की आदत लगाती है | १० दिवसीय शिविर ,से लेकर ३ महीने तक के शिविर के दौरान इंसान को एकांत में रहने की आदत हो जायेगी |तथागत बुद्ध ने कहा? किस सुत्त में विपश्यना उपासक ने करनी चाहिए ऐसा कहा है ? अगर नहीं कहा तो फिर उन्होंने ऐसे क्यों नहीं कहा ? बुद्ध ने अपने भिक्षु संघ को हर बात स्पष्ट रूप से बताई है | बाबासाहब ने धर्मांतर करने के बाद घोषणा की थी की “ मैं पूरा भारत बौद्धमय करूँगा | ” तो गोयंका गुरूजी को कौनसा भारत बौद्धमय करना है ? गोयंका गुरूजी के उद्देश को देखे तो उन्हें " भारत बौद्धमय नहीं " “ भारत विपश्यनामय करना है |” | धर्मांतर के पीछे बाबासाहब का एक बड़ा ध्येय ये था की धर्म का असर आनेवाली पीढ़ी पर पड़ने की संभावनाए ज्यादा होती है | पंथ या सम्प्रदाय अपनाने से आनेवाली पीढ़ी उसे अपनाने की संभावना कम होती है | उदा. के तौर पर अगर किसी के पिताजी वारकरी संप्रदाय से हो तो लड़का - लड़की भी वारकरी संप्रदाय को मानेंगे ऐसा नहीं कहा जा सकता | विपश्यना करने वाले व्यक्ति के लड़का - लड़की विपश्यी ही होंगे ऐसा बहोत ही कठिन है | पर मुस्लिम ,हिंदू , ख्रिश्चन , बौद्ध के लड़का - लड़की ज्यादातर वही धर्म में रहना पसंद करते है | उसी तरह संस्कार की बात है , आनेवाली पीढ़ी पर धर्म के संस्कार डालने के लिए आदमी जितना उत्साही दिखाई देता है उतना संप्रदाय या पंथ के लिए नहीं दिखाई देगा | विपश्यना साधना सिखना और करना दस दिवसीय शिविर में शील पालन करना इतने में ही सिर्फ धर्म कभी नहीं हो सकता | इससे आदमी के अंदर नकारात्मक प्रवृत्ति का जन्म होने की संभावनाए अधिक है | विपश्यना साधना से दुनिया के बंधन त्यागने की इच्छा होती है | गृहत्याग की इच्छा जगती है | इंसान धीरे धीरे एकांत प्रिय होने लगता है | और धीरे धीरे बाबासाहब के मिशन से दूर होते दिखाई देता है | कोई भी विपश्यी धर्मांतर करना महत्वपूर्ण नहीं समझता | बाबासाहब को अपेक्षित बुद्ध धम्म सामाजिक क्रांति है पर विपश्यना उसे रोकती है |विपश्यना करने वाले व्यक्ति धर्मांतर विरोधी होने लगते है | गोयंका जी तो कहते है विपश्यना करने से लोग बुद्ध बनेंगे क्या गोयंका जी आज तक बुद्ध बन गए ? इस लिए ये काफी विश्वास से कहा जा सकता है की गोयंका गुरूजी के विपश्यना के मार्ग ने बाबासाहब के धम्मक्रांति पर निश्चित रूप से रोक लगाईं हुई है | इस लिए हर आदमी भलेही अनुभव के लिए इसे अवश्य करे पर गोयंका गुरूजी या फिर विपश्यना का प्रभाव स्वयं पर करना मतलब बाबासाहब के धम्मक्रांति के प्रति स्वयं को नकारार्थी स्थिति में लेकर जाना निश्चित है |
कांशीराम जी ‘ बामसेफ ’ सामाजिक क्षेत्र में और ‘ बसपा ’ राजनैतिक क्षेत्र में इन दो देश के महत्वपूर्ण संघटनाओ के जनक है | इन दो संघटनाओ को रचाने के लिए उन्होंने व्यक्तिगत बहोत परिश्रम भी किये | पर इन दो संघटनाओ के प्रचार करते वक्त वास्तविक अपनी राजनीती को फैलाते हुए उन्होंने जातीयता को बढ़ावा दिया है ये बात किसी भी हालत में नकारी नहीं जा सकती | “ मैं बुद्ध धम्म की दीक्षा लूँगा |” ऐसा उन्होंने कहा था और धम्म के नाम पर उन्होंने काफी चतुराई से राजनीति भी की | भारत देश प्रजासत्ताक लोकतंत्र होने के बाद तिन प्रकार की शक्तिया ही देश के राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रख सकती थी ( १ ) मो.क.गाँधी ( २ ) वि.दा. सावरकर ( ३ ) बाबासाहब डॉ .भी ,रा. आंबेडकर उसमे की गाँधी जी की शक्ति के रूप में कांग्रेस बलवान थी | सावरकर का घना प्रतिनिधित्व भाजपा कर रही थी | बाबासाहब का प्रतिनिधित्व करने की जगह रिपाई ने अपने अंदर के झगडो के चलते खो चुकी थी इस बात का पूरा फायदा कांशीराम जी ने उठाया | और बाबासाहब का नाम लेकर सामाजिक और राजनैतिक शुरुवात की | अपनी राजनीती के लिए उन्होंने O.B.C , S.C , S.T. , V. J . N .T. को एक कतार में लाने के लिए ‘ बहुजन ’ इस शब्द का प्रयोग किया | अगर उन्हें बाबासाहब का आन्दोलन चलाना होता तो वे ' रिपब्लिक ' यह बाबासाहब की संज्ञा उस वक्त तक इस्तेमाल कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया | राजनीती के लिए उन्होंने बुद्ध धम्म की उपाधि मिल चुके बोधिसत्व डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जैसे महान व्यक्तिमत्व को बिरसा मुंडा , अन्ना भाऊ साठे , पेरियार रामास्वामी नायकर ऐसे अनेक नेताओं के साथ खड़ा कर दिया | और बाबासाहब के साथ साथ उन्हें भी महापुरुष घोषित कर दिया | उनके आन्दोलन को लोग जुड़े इस लिए हर जाती का एक महान पुरुष बनाकर बाबासाहब की बराबरी में खड़ा किया गया | चमार समाज के लोगो को आन्दोलन में खींचने का जरिया रविदास जी को बनाया , मातंग समाज के अन्ना भाऊ साठे , आदिवासी भाइयो के लिए बिरसा मुंडा | आपके समाज का महान इतिहास है ऐसे हर समाज के आदमी से कहा गया | इससे उनके मन में अपने जाती के प्रति अहंकार की वृद्धि हुई | वास्तविकता वे लोग आंबेडकरवाद की तरफ ना झुककर अपने समाज के जातीयता के अहंकार से अपने महापुरुष की तरफ झुके | इसलिए चमार समाज का आदमी जय रविदास के बाद जयभीम , मातंग समाज का आदमी जय अन्नाभाऊ साठे बोलने के बाद जयभीम , आदिवासी बांधव जय बिरसा बोलने के बाद जयभीम कहने लगे | इस तरह से हर आदमी की जाती का बड़ा इतिहास बताना , उन जाती के लोगो का उस विशिष्ट समाज के प्रति अहंकार बढ़ना इस वजह से उन्हें बुद्ध धम्म में दीक्षा लेने की जरुरत नहीं रही | जो बाबासाहब हिंदू धर्मं पर पूरी जिंदगी पूरी ताकद से विरोध करते आये क्योकि वो असमानता पर आधारित है | बाबासाहब ने अपने ग्रन्थ ,भाषणों में हिंदू के धर्म ग्रन्थ पर गहरी आलोचना की |' रिडल इन हिन्दुझम ' जैसी माहान किताबे लिखाकर हिंदू धर्म के भगवान और ग्रन्थ का भेद खोला | इन बातो पर कांशीराम जी राजनीति के चलते कभी भी आग ना उगल सके क्योकि बहुमत प्राप्त करने का शायद उन्हें बड़ा लालच हो | उनकी बनाये हुए बामसेफ नामक संघटन तो पहले से ही खुद को NON RELIGIOUS घोषित कर रखा है | मतलब ये बात तो स्पष्ट है की उन्हें बुद्ध धम्म से कोई लेना देना नहीं | ना ही वे लोग बुद्ध की प्रतिमा रखते है | उनका लक्ष्य तो सिर्फ “ सारे समाज को एकजुट करके ब्राम्हण समाज पर आक्रमण करना इतनाही नजर आता है |” क्या यह कार्य आंबेडकरवाद या बुद्ध धम्म से सम्बंधित है ? ' बहुजन ' शब्द की उत्पत्ति बुद्ध के धम्म से हुई है ऐसा इनका कहना है | ये बात सही भी है पर बुद्ध ने ऐसे संकुचित वृत्ति से बहुजन इस शब्द का प्रयोग नहीं किया | बाबासाहब ने अपने किसी भी संघटन का नाम बहुजन क्यों नहीं रखा ? कांशीराम जी की बामसेफ पूरी तरह से हिटलर और मार्क्स से प्रेरित दिखाई देती है | हिटलर की किताब ‘ मेरी लढाई ’ में आधे से ज्यादा पन्ने पर वो बहुजन शब्द पर जोर देता है | हिटलर का आन्दोलन जर्मनी में यहूदी लोगो के खिलाफ चलाया गया इनका आन्दोलन ब्राम्हण के खिलाफ चलाया जा रहा है | हिटलर अपने भाषण के दौरान अपने खुद के संघटन के लोग कम्युनिस्टों ने अंदर कुछ कम ज्यादा नहीं करना चाहिए इसलिए लाठी वाले रक्षक रखता था उसी प्रकार वामन मेश्राम जी भी रखते है | ‘ बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर ‘ की प्रतिस्थापना करना ये सिर्फ कांशीराम जी का दिखावा है | वास्तविक उस संघटना ने बुद्ध धम्म को बढ़ाने का कोई कार्य नहीं किया | वास्तविकता यही है की कांशीराम जी ने बुद्ध धम्म और बाबासाहब को अपनी राजनीति में फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल किया | अगर ऐसा नहीं होता तो आज तक बाबासाहब के महत्व पूर्ण स्थल को उन्होंने पार्टी का पैसा लगाकर उद्धार किया होता |
इसलिए यक़ीनन गोयंका गुरूजी और कांशीराम जी ने बाबासाहब डॉ. आंबेडकर की धम्मक्रांतिपार रोक लगायी है | आज तक इन लोगो ने कोई भी दीक्षा समारोह पर कभी भी अपना लक्ष केंद्रित नहीं किया | बाबासाहब डॉ. आंबेडकर की धम्मक्रांति में ' धम्म दीक्षा ' को असाधारण महत्व है | और इन लोगो ने इस मुद्दे को नजरअंदाज ही किया है | अगर इन्होने आज तक अम्बेडकरी विचारों को साथ लेकर चलना ही होता तो वे लोग ' धम्मादिक्षा ' के समारोह करवाते जैसे की बाबासाहब ने करवाए | अगर इनकी रोक को उठाना है तो इनका साथ देना इस बात को छोडने और अपने दिमाग को जागृत करने के लिए बाबासाहब और बाबासाहब द्वारा दिए बुद्ध के साहित्यों का अभ्यास कर धम्म मार्ग को बढाने की जरुरत है | बाबासाहब के साहित्य पढ़े बिना बुद्धा की और बढ़ने की कोशिश न करे इससे सभ्रम हो सकता है| अभ्यास करने की वजह से इनका आन्दोलन किस तरह गलत हो रहा है ये साफ़ हो जायेगा | इन दोनों लोगो की वैचारिकता में बाबासाहब के धम्म मार्ग को धुन्दला कर रखा है | जिस वजह से धम्मक्रान्ति के मार्ग पर आगे की राह देखने में कठिनाइया महसूस होने लगी है | ये वे शत्रु है जो दिखाई नहीं देते | इनका आन्दोलन इन्होने पूरी तरीके से अम्बेडकरी विचारों को तोड़ - मरोड़कर फैलाया हुआ है | आंबेडकरवादी समाज की सबसे बड़ी जरुरत ये है की इन जैसे शत्रु का सामना करने के लिए अपनी शैक्षणिक , आर्थिक , सामाजिक और राजनैतिक विकास की सीडिया बनाए | और बाबासाहब की धम्मक्रान्ति पर अपने कदम बढाए | बाबासाहब की धम्मक्रान्ति को आगे बढाने के लिए हमे हर क्षेत्र की श्रेष्ठ संघटनाओ की जरुरत है | जो की शैक्षणिक , आर्थिक , सामाजिक और राजनैतिक इन जैसे मुद्दों पर कार्य करे | धम्म को बढाने के लिए हमें इस दिशा में सोचने की जरुरत है | (कोशिश होगी की इस विषय पर आगे भी मेरे लेख आपके विचारो को गति अवश्य दे और आपके हा प्रश्न का समाधान हो|)
धन्यवाद
(यह जानकारी अधिकांश लोगो तक पहुचने तथा सही अम्बेडकरी आन्दोलन को आगे बढाने हेतु शेयर करे | शेयर करने से बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी को अपेक्षित समाज निर्मिती हो सकती है||)
अभिजित गणेश भिवा
ही टिप्पणी लेखकाना हलविली आहे.
उत्तर द्याहटवाdharma na madir main mile , dharm na hath bikay, dharma na grantho main mile , JO DHARE SO PAYE!!
उत्तर द्याहटवाGrowth of teachings Of Acharya S N Goenka proved the Non-secterian nature of Dharma , Pls dont waste precious time in 'Bhudhi-Vilas'...!! Good News(2013) :- Now vipassana made compulsory in ALL schools across the Maharashtra Because its UNIVERSAL technique NOT Monopoly of any religion..B Happy...!